loading...

बुधवार, 13 मार्च 2013

बिन फेरे हम तेरे


नुकसान में महिलाएं ही रहती हैं

‘बिन फेरे हम तेरे’ यानि लिवइन रिलेशनशिप को महाराष्ट्र सरकार ने कानूनन मान्यता प्रदान की तो युवाओं ने उसे हाथों-हाथ ले लिया। आज इस रिलेशनशिप के मोहक जाल में फंसी कई युवतियों का भविष्य अधर में लटका है, वह दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं।

यह सच है कि जब हम किसी भी सभ्यता को अपनाते है तो, हमें अपने अंदर वह क्षमता रखनी चाहिए कि हम उसे निभा पाएं, वरना वह हमारे लिए अभिशाप बन जाता है। इसका जीता जागता उदाहरण है- दिल्ली के जनकपुरी निवासी पारूल बग्गा है। पारूल बग्गा तीन साल तक कानपुर के एक युवक शादाब के साथ ‘बिन फेरे हम तेरे’ की तर्ज पर पत्नी की तरह रही और सब कुछ शादाब पर न्योछावर करती रही। दोनों के मधुर संबंधों से एक बच्चा भी हुआ। लेकिन अब जब पारूल ने शादी की बात कही तो शादाब ने अपना मुंह फेर लिया। आज पारूल के साथ उस बच्चे का भी भविष्य दाव पर लगा है।

24 वर्षीय पारूल बग्गा एक निजी बैंक में कर्मचारी थी। तीन वर्ष पहले पारूल की मुलाकात कानपुर के जाजमऊ डिफेंस कालोनी निवासी शादाब से हुई थी। कंप्यूटर कम्पनी में काम करने वाला शादाब लोन के सिलसिले में बैंक आया था। एक बार उनका आपस में परिचय हुआ तो धीरे-ध्ीरे उनकी दूरियां नजदीकियां में  बदलने लगी। बात यहां तक बढ़ी कि शादाब के लिए पारूल की जुदाई अखरने लगी तब उसने पारूल को अपने साथ ही कानपुर में रखने का निश्चय कर लिया। पहले तो पारूल ने बिना शादी के उसके साथ रहने से माना कर दिया, लेकिन जब शादाब उसे समझाया कि जैसे ही वह ठीक से कमाने लगेगा तब उससे शादी कर लेगा। तब वह मान गयी और घर से बगावत करके उसके साथ रहने का निश्चय कर लिया।

लिवइन रिलेशनशिप के मोहक जाल में फंसी पारूल अपना सब कुछ दाव पर लगाकर शादाब के साथ 17 फरवरी 2006 को कानपुर आ गयी। बेटे के साथ एक अंतरजातिय लड़की देख अहमद सुहैल ने शादाब को काफी फटकार लगायी। घर वालों ने भी काफी विरोध किया, फिर भी वह पारूल को खेरेपति मंदिर के पास किराए का कमरा दिला दिया। तब पारूल यहां एक निजी कंपनी में नौकरी कर ली।

गुजरे वक्त के साथ उनका प्यार परवान चढ़ता रहा। शादाब के लिए पारूल सब कुछ थी, पारूल के लिए शादाब। वक्त के साथ शादाब की नौकरी दुबई में लग गयी, तब वह दुबई चला गया। इस दौरान तीन-चार माह पर जब भी शादाब कानपुर आता तो वह पारूल से मिलता-जुलता रहता था। पारूल को शादाब से एक बेटा पैदा हुआ। प्यार से उसने बेटे का नाम केशव रखा। केशव के जन्म के बाद पारूल की जिम्मेदारियां बढ़ गयी थी, इसके चलते उसने अपनी नौकरी छोड़ दी। तब शादाब ही उसका सारा खर्चा उठाने लगा था।

कहते प्यार का आखरी पडाव शादी है। अततः जब पारूल को लगने लगा कि अब उसे शादाब से शादी कर लेनी चाहिए, तब वह शादाब से शादी कर लेने की जिद करने लगी। इस बात की जानकारी जब शादाब के पिता अहमद सुहैल के कानों तक पहंुची तो उन्होंने अपने इज्जत की दुहाई देते हुए शादाब की बहन समीना और भाई ताविश के निकाह होने तक पारूल को इन्तजार करने को कहा। आखिरकार कुछ ना-नुकुर के बाद पारूल मान गयी। बाद में जब भी वह शादी की बात करती उसे शादाब व उसके परिजन गोल-मटोल जवाब देकर टालने लगे। लेकिन जब शादी करने की जिद करने लगी, तब पारूल बताती है कि शादाब के परिजन उसे शहर छोड़ने के लिए मजबूर करने लगे। शहर न छोड़ने पर उसे डी-टू गैंग के गुंडों से मरवाने की भी धमकी दी। इतना ही नहीं उस पर कार चढ़ाकर उसकी हत्या कर देने का भी प्रयास किया गया।

अंततः कोई चरा न देखकर पारूल ने महिला थाने की प्रभारी मंजू कनौजिया से मिलकर अपनी आपबीती सुनाते हुए न्याय की गुहार लगायी। पारूल की आपबीती सुनने के बाद थाना प्रभारी मंजू कनौजिया ने शादी का झंासा देकर संबंध बनाने, मारपीट, धमकी देने की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर शादाब की तलाश में दबिश दी, लेकिन शादाब के मकान में ताला लगा होने से पुलिस को वहां से बैरंग ही लौटना पड़ा। पास-पड़ोस से पूछताछ पर पता चला कि शादाब दुबई में है और उसके परिजन ताला लगाकर पता नहीं कहा चले गए है।
लिवइन रिलेशनशिप के एक अन्य मामले में कानपुर के ही नौबस्ता थाना क्षेत्र के एक युवक आशीष ने तंग आकर खुद अपने ही सीने में गोली मार ली है। घटना के संर्दभ में बताते है कि आशीष पांच साल से रजनी गुप्ता नाम की एक महिला के साथ रह रहा था। रजनी अपने पति को छोड़कर अकेले रह रही थी। गुजरे वक्त के साथ एक बार फिर वह सब कुछ भूलकर पुर्व पति से मिलने-जुलने लगी। इस बात की जानकारी जब आशीष को हुई तो उसने एतराज जताया। इस बात पर दोनों में कहासुनी हुई मामला इतना बढ़ा कि अजीज आकर आशीष ने खुद को गोली मार ली थी

लिवइन रिलेशनशिप पर सन् 2002 में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस सी.सोमायाजुलु से असहमति व्यक्त की। उल्लेखनीय है कि जस्टिस सी सोमायाजुलु ने धारा 415 के तहत महिला की पवित्रता को सम्पत्ति माना था। उनका तर्क था कि पैसे के लालच में शारीरिक संबंध बनाने वाली महिला को वेश्या कहा जाता है । अत शारीरिक सुख के लिए कोई पुरुष किसी महिला को शादी के प्रलोभन देता है तब इसे सम्पत्ति छीन लेने जैसे मामले की श्रेणी में रखा जा सकता है। परम्परागत तौर पर भारतीय महिलाएं अपनी वर्जिनिटी (कौमार्य) अपने पति के लिए बचाकर रखती हैं। शादी के झांसे में आकर देह समर्पण करना और लिव इन रिलेशनशिप के फेरे में आकर सब कुछ खो बैठने पर आरोपी पुरुष के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई का आधार क्या हो सकता है। ऐसा मामला कानूनी लड़ाई में कितनी देर टिक पाएगा?

अगस्त 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस.एन. धींगरा ने कहा था कि लिव इन रिलेशनशिप इज ए वॉक इन एण्ड वॉक आउट रिलेशनशिप। ऐसे संबंधों पर कोई कानूनी बंधन नहीं होता है। यदि लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा पुरुष साथ रहने वाली महिला के साथ विवाह से इंकार कर दे तब भी उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती। आखिर आपने जानते-बूझते और ऐसे रिश्तों से जुड़े जोखिम को समझते हुए भी मौत के कुएं में छलांग लगाने जैसा दुस्साहस किया है। लिव-इन-रिलेशनशिप से समाज में एक खास तरह का प्रदूषण फैल रहा है। यह परिवार व्यवस्था से भिन्न है। तमाम तथ्यों से अवगत होते हुए भी ऐसे रास्ते पर आगे बढ़ना बुद्धिमानी नहीं हो सकती। चाहे लिव इन रिलेशनशिप हो या झांसे में आकर देह समर्पण करना दोनों ही स्थितियों में नुकसान में महिलाएं ही रहती हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

loading...