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शुक्रवार, 29 मार्च 2013

मां-बाप के सामने बेटी करती है सेक्स


दुनियाभर में अफीम की खेती के लिए पहचाना जाने वाला मंदसौर और नीमच जिला देह व्यापार के कारण चर्चाओं में हैं। चर्चाओं का बाजार आम पब्लिक से लेकर विधानसभा तक में गर्म है। मध्यप्रदेश विधानसभा में जब भाजपा विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने खुलासा किया कि मंदसौर में देह व्यापार के करीब 250 डेरे चल रहे हैं, तो वहां मौजूदा विधायक और अन्य लोग अवाक रह गए। हालांकि यहां दशकों से देह व्यापार चल रहा है, लेकिन पिछले कुछेक सालों में जिस्म की मंडियां और गर्म हुई हैं। खासकर अब देह व्यापार में अब छोटी-छोटी बच्चियों को भी ढकेला जा रहा है।चिंताजनक बात यह है कि देह व्यापार के चलते इस जिले में घातक रोग एड्स भी तेजी से अपना दायरा बढ़ा रहा है। एमएलए यशपाल सिंह सिसौदिया के मुताबिक, जिले में 1223 व्यक्ति एचआईवी पॉजिटिव पाए गए हैं। करीब ६५६ एड्स की गंभीर चपेट में हैं, जबकि 48 लोग मौत का शिकार बन गए। दरअसल, यहां निवासरत बांछड़ा समुदाय जिस्म बेचकर पेट पालने में कोई संकोच नहीं करता। मां-बाप स्वयं अपनी बेटियो को इस धंधे में उतारते हैं। मंदसौर में करीब ४० गांवों में फैला बांछड़ समुदाय देह व्यापार में लिप्त है।
बांछड़ा समुदाय के परिवार मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के रतलाम, मंदसौर व नीमच जिले में रहते हैं। इन तीनों जिलों में कुल ६८ गांवों में बांछड़ा समुदाय के डेरे बसे हुए हैं।  मंदसौर शहर क्षेत्र सीमा में भी इस समुदाय का डेरा है। तीनों जिले राजस्थान की सीमा से लगे हुए हैं। रतलाम जिले में रतलाम, जावरा, आलोट, सैलाना, पिपलौदा व बाजना तहसील हैं। मंदसौर जिले में मंदसौर, मल्हारगढ़, गरोठ, सीतामऊ, पलपुरा, सुवासरा तथा नीमच में नीचम, मनासा व जावद तहसील है। मंदसौर व नीमच जिला अफीम उत्पादन के लिए जहां दुनियाभर में प्रसिद्ध है, वही इस काले सोने की तस्करी के कारण बदनाम भी है। इन तीनों जिलों की पहचान संयुक्त रूप से बांछड़ा समुदाय के परंपरागत देह व्यापार के कारण भी होती है ।  150 पहले अंग्रेज लाए थे हवस मिटाने और अब बांछड़ा समुदाय में यह पेट भरने का मुख्य जरिया बन गया है, जानिए हैरान कर देने वाली कहानी....
बांछड़ा समुदाय की उत्पत्ति कहां से हुई, यह कुछ साफ नहीं है। जहां समुदाय के लोग खुद को राजपूत बताते हैं, जो राजवंश के इतने वफादार से थे कि इन्होंने दुश्मनों के राज जानने अपनी महिलाओं को गुप्तचर बनाकर वेश्या के रूप में भेजने में संकोच नहीं किया।
 वहीं कुछ लोगों का तर्क है कि करीब 150 साल पहले अंग्रेज इन्हें नीमच में तैनात अपने सिपाहियों की वासनापूर्ति के लिए राजस्थान से लाए थे। इसके बाद ये नीमच के अलावा रतलाम और मंदसौर में भी फैलते गए।
हालांकि ऐसा नहीं है कि सरकार ने इस जाति को देह व्यापार से निकालने कोई जतन नहीं किया हो, लेकिन इस समुदाय के लोग पेट भरने के लिए दूसरे कामों के बजाय जिस्म बेचना अधिक सरल मानते हैं। बांछड़ा और उनकी तरह ही देह व्यापार करने वाली प्रदेश के 16 जिलों में फैली बेडिय़ा, कंजर तथा सांसी जाति की महिलाओं को वेश्यावृत्ति से दूर करने के लिए शासन ने 1992 में जाबालि योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत समुदाय के छोटे बच्चों को दूषित माहौल से दूर रखने के लिए छात्रावास का प्रस्ताव था। इस योजना को दो दशक बीत चुके हैं, लेकिन जिस्म की मंडियां अब भी सज रही हैं। इस समुदाय को जिस्म फरोशी के धंधे से बाहर निकालने कई बड़े एनजीओ जैसे एक्शन एड आदि भी लगातार सक्रिय हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि आगे स्थिति सुधरेगी। मंदसौर जिले के बासगोन, ओसारा, संघारा, बाबुल्दा, नावली, कचनारा, बोरखेड़ी, शक्करखेड़ी, बरखेड़ापंथ, बिल्लौद, खखरियाखेड़ी, खेचड़ी, सूंठोद, चंगेरी, मुण्डली, डोडियामीणा, खूंटी, रासीतलाई, काल्याखेड़ी, पाडल्यामारू, आधारी उर्फ निरधारी, बानीखेड़ी, लिम्बारखेड़ी, रूणवली, कोलवा, निरधारी, लखमाखेड़ी, मोरखेड़ा, उदपुरा, डिमांवमाली, रणमाखेड़ी, पानपुर, आक्याउमाहेड़ा, मंदसौर शहर और बांसाखेड़ गांवों में बांछड़ा समुदाय बहुलता में रहता है।
बांछड़ा समुदाय ग्रुप में रहता है, जिन्हें डेरा कहते हैं। बांछड़ा समुदाय के अधिकतर लोग झोपड़ीनुमा कच्चे मकानों में रहते हैं। बांछड़ा समुदाय की बस्ती को सामान्य बोलचाल की भाषा में डेरा कहते हैं। इनके बारे में यह भी कहा जाता है कि मेवाड़ की गद्दी से उतारे गए राजा राजस्थान के जंगलों में छिपकर अपने विभिन्न ठिकानों से मुगलों से लोहो लेते रहे थे। माना जाता है कि उनके कुछ सिपाही नरसिंहगढ़ में छिप गए और फिर वहां से मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के काडिय़ा चले गए। जब सेना बिखर गई तो उन लोगों के पास रोजी-रोटी चलाने का कोई जरिया नहीं बचा, गुजारे के लिए पुरूष राजमार्ग पर डकैती डालने लगे तो महिलाओं ने वेश्वावृति को पेशा बना लिया, ऐसा कई पीढिय़ां तक चलता रहा और अंतत: यह परंपरा बन गई।
इस समुदाय पर रिसर्च करने वाले मानते हैं कि बांछड़ा, बेडिय़ा, सांसी, कंजर जाति वृहद कंजर समूह के अंतर्गत ही आती हैं। सालों पहले वे जातियां वृहद कंजर समूह से पृथक हो गईं। इसके पीछे भी विभिन्न कारण रहे होंगे। धीरे-धीरे इनकी सामाजिक मान्यताओं में भी बदलाव आ गया। इन जातियों में वेश्वावृत्ति की शुरूआत के पीछे इनकी अपराधिक पृष्ठभूमि ही महत्वपूर्ण कारण रही होगी। पुरुष वर्ग जेल में रहता था या पुलिस से बचने के लिए इधर-उधर भटकता रहा हो सकता है कि महिलाओं ने अपने को सुरक्षित रखने के लिए तथा अपनी आजीविका चलाने के लिए वेश्वावृत्ति को अपना लिया हो। दूसरे अन्य कारण भी रहे होंगे। धीरे-धीरे इन जातियों में वेश्यावृति ने संस्थागत रूप धारण कर लिया। प्राचीन भारत के इतिहास में इन जातियों का उल्लेख नहीं मिलता है। 
रतलाम में मंदसौर, नीमच की ओर जाने वाले महु-नीमच राष्ट्रीय मार्ग पर जावरा से करीब 7 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम-बगाखेड़ा से बांछड़ा समुदाय के डेरों की शुरुआत होती है। यहां से करीब 5 किलोमीटर दूर हाई-वे पर ही परवलिया डेरा स्थित है। इस डेरे में बांछड़ा समुदाय के 47 परिवार रहते हैं। महू-नीमच राष्ट्रीय राजमार्ग पर डेरों की यह स्थिति नीमच जिले के नयागांव तक है। रतलाम जिले के दूरस्थ गांव में भी इनके डेरे आबाद हैं।
बांछड़ा समुदाय के लोग कभी गुर्जरों के समक्ष नाच-गाना करते थे। ये कभी स्थायी ठीये बनाकर नहीं रहे। यानी बांछड़ा समुदाय के लोग किसी जमाने में खानाबदोश जीवन व्यतीत करते थे। एक गांव से दूसरे गांव भ्रमण कर अपना गुजर बसर करते थे। यह सब अब इतिहास का हिस्सा बनकर रह गया।
देश में एड्स की रोकथान के लिए सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं प्रतिवर्ष करीब 100 करोड़ रूपए खर्च करती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक इतनी राशि खर्च होने के बावजूद भारत में एचआईवी संक्रमित लोगों की तादाद 40 लाख के ऊपर जा पहुंच चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि कई लोगों के लिए यह बीमारी एक उद्योग है। मध्यप्रदेश में बांछड़ा समुदाय के देह व्यापार से उत्पन्न एड्स की चुनौती से निपटने के लिए सरकारी प्रयास किए गए, जो अभी भी जारी हैं।
बाँछड़ा समुदाय में व्याप्त परंपरागत देह व्यापार का मुद्दा मध्यप्रदेश विधानसभा में पहले भी गूंज चुका है। इस रूढि़वादी परंपरा को रोकने के लिए विधानसभा सर्वसमति से प्रस्ताव भी पारित कर चुकी है। 23 फरवरी 1983 को राज्य की विधानसभा में इस मुद्दे को लेकर लंबी बहस हुई थी। दरअसल बाबूलाल गौर ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया था कि रतलाम और मंदसौर के राजस्थान से लगे हिस्सों में बांछड़ा जाति की लगभग 200 बस्तियों में उक्त समाज की ज्येष्ट पुत्री को उक्त समुदाय की रीति रस्म और परंपरा के अनुसार वेश्वावृत्ति का शर्मनाक व्यापार अपनाना पड़ रहा है। इस प्रथा को रोकने सरकार पहल करे।
बांछड़ा समुदाय में प्रथा के अनुसार घर में जन्म लेने वाली पहली बेटी को जिस्म फरोशी करनी ही पड़ती है। रतलाम नीमच और मंदसौर से गुजरने वाले हाईवे पर बांछड़ा समुदाय की लड़कियां खुलेआम देह व्यापार करती हैं। वे राहगीरों को बेहिचक अपनी ओर बुलाती हैं।

गुरुवार, 28 मार्च 2013

सेक्स के लिए उकसाते हैं....



महिलाओं के लाल रंग के कपड़े
प्रतीक चित्र
महिलाओं में ऐसा क्या होता है जो पुरूषों को आकर्षित करता है। हाल ही किए गाए एक शोध से पता चला है कि लाल रंग के कपड़े में लिपटी महिलाएं पुरूषों को बेहद सुन्दर और आकर्षक लगती हैं। फ्रांस में यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ब्रिटेन के शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया है कि पुरूष महिलाओं को लाल कपड़ों में देखना पसंद करते हैं क्योंकि उनके हिसाब से यह इस बात का संकेत होता है कि इस रंग की ड्रेस पहनने वाली महिलाएं पहली ही डेट में उनके साथ हमबिस्तर हो जाएंगी।
इस शोध में 18 से 21 आयुवर्ग के 120 पुरूष छात्रों को शामिल किया गया। हर समूह के लिए महिला के परिधान का रंग अलग-अलग रखा गया जो लाल, नीला, हरा या सफेद था। इसके बाद छात्रों को एक प्रश्नावली दी गई और उन्हें एक से लेकर नौ तक इन तस्वीरों को अंक देने को कहा गया कि कौन सी महिला उन्हें आकर्षक लगी। उनसे यह भी पूछा गया कि इनमें से कौन सी महिला पहली ही डेट पर हमबिस्तर हो सकती है।
प्रतीक चित्र
शोध से खुलासा हुआ कि अधिकतर प्रतिभागियों का मानना था कि लाल रंग का परिधान पहनने वाली महिला यौन संबंध की अधिक इच्छुक दिखी और तटस्थ रंगों के कपड़े पहनने वाली महिला के मुकाबले लाल रंग के कपड़े वाली महिला के तुरंत बिस्तर पर जाने की संभावना अधिक थी। उन्होंने यह भी पाया कि कपड़े भड़काऊ नहीं थे और केवल रंग के आधार पर प्रतिभागियों से उनका आकलन करने को कहा गया था। शोध में पाया गया कि लाल रंग वासना और रोमांस और महिला प्रजनन से जुड़ता है।

मंगलवार, 19 मार्च 2013

शादीवाला दारोगा

सामाजिक कथा

वन्दना-अजीत एक दूसरे को वरमाला पहनाते
पुलिस अधिकारियों का पाला अक्सर चोर-डकैत और गुण्डे-बदमाशों से पड़ता ही रहता है.उनसेे किस तरह निपटना है यह भी पुलिस वालों को बखूबी पता होता है. यूॅ तो पुलिस जनता की जान-माल की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सदैव तत्पर रहती है. हमेशा अपराधियांे-अराजकतत्वों के पीछे भागने वाली पुलिस को कम ही समय मिलता है जब वह किसी की परेशानियों व मुसीबतों को शिद्दत से महसूस करते हो और उनके लिए तन-मन से समर्पित हो जाते हो. हजारों पुलिस कर्मियों की भीड़ में कुछ पुलिस वाले ही ऐसे होते है जो मानवीय गुणों को अपनाते हुए मुसीबतजदा लोगो की दिल से मदद करते है और जहाॅ तक बन पड़ता है समाज को जोड़ने के साथ लोगों को खुशियां बांटने का काम करते है. ऐसे ही तमाम पुलिस वालों में एक नाम जुड़ गया है- शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत का.
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद के खेतासराय के वर्तमान थाना प्रभारी के पद पर कार्यरत शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत की पहचान इन दिनों शादी वाले दारोगा के रूप में बन गई है. महज एक महीने के भीतर चार प्रेमी-प्रेमिकाओं की शादी कराकर उनका घर बसाने का काम किया है. दरअसल यह चारों प्रेमी जोड़ा आपस में एक दूसरे से मोहब्बत करते थे और उनकी मंशा शादी कर घर बसाने की थी, लेकिन कहीं लड़के तो कहीं लड़की के माता-पिता और परिवारजन उनके रास्ते का रोड़ा बने हुए थे. यहाॅ तक की कुछ मामलों में तो दोनों पक्ष एक दूसरे को देख लेने और मरने-मारने तक उतारू हो गये, मामला पुलिस थाने तक पहुॅचा और थाना प्रभारी शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत ने सूझ-बूझ से काम लिया और दोनों पक्षों के परिजनों को समझा-बुझाकर प्रेमी जोड़े को शादी के बंधन में बांध दिया.

पहला मामला खेतासराय कस्बे के मानीखुर्द मुहल्ले में रहने वाले रियाज अहमद के घर से जुड़ा है. ईद के एक दिन पहले 18 अगस्त को आधीरात के वक्त मुहल्ले के लोग चोर-चोर का शोर मचाने लगे. उस वक्त थाना प्रभारी शमशेर बहादुर दल-बल के साथ इलाके की गश्त पर निकले थे. चोर के शोर ने उनका भी ध्यान खींचा और वह मामले को समझने के लिए रियाज अहमद अंसारी के दरवाजे पर पहुॅच गये. पता किया तब मालुम चला कि मुहल्ले के एक शख्स ने किसी अन्जान व्यक्ति को रस्सी के सहारे रियाज अहमद के मकान में चढ़ते देख उसी ने चोर का शोर मचा दिया. सच्चाई जानने और चोर को पकड़ने लिए रियाज अहमद के घर का एक-एक कोना छाना जाने लगा. जब रियाज अहमद की बेटी तरन्नुम के कमरे में पहुॅचे तो एक कोने में छिपा हुआ चोर पकड़ में आ गया. पूछताछ में खुलासा हुआ कि वह कोई चोर नहीं बल्कि तरन्नुम का प्रेमी फहीम है जो आधी रात को रस्सी के सहारे अपनी प्रेमिका तरन्नुम से मिलने और उसे ईद की अग्रिम मुबारकबाद देने आया था. फहीम हत्या के एक मामले में साल भर पहले जेल भी जा चुका था. तरन्नुम के पिता रियाज अहमद बेटी के प्रेमी फहीम की जान लेने पर उतारू हो गये. मौके की नजाकत को देख थाना प्रभारी श्री सिंह ने रात में ही तरन्नुम और फहीम को अपने साथ थाने लिवा लाये.

अगले दिन 19 अगस्त को खेतासराय थाने में तरन्नुम और फहीम के परिवारजनों को बुलाकर दोनों में सुलह कराने का प्रयास किया गया, लेकिन तरन्नुम के अब्बा रियाज अहमद अब अपनी बेटी को साथ रखने को तैयार नहीं थे तो दूसरी तरफ फहीम के पिता जैनुल आब्दीन तरन्नुम को अपने घर की बहु बनाने को राजी नहीं थे, दोनों पक्ष की त्योरियां चढ़ी हुई थी. थाना प्रभारी श्री सिंह ने दोनों पक्षों को पहले बड़े प्यार से समझाया फिर फहीम के पिता से कहा, ‘‘तुम्हारा बेटा पहले से ही हत्या के मामले में जेल जा चुका है और अभी जमानत पर बाहर है, यदि फहीम और तरन्नुम का निकाह नहीं हुआ तो इस बार मैं फहीम पर ऐसी धारा लगाकर चालान करूॅगा कि जल्द जमानत भी नहीं होगी और जेल में सड़ेगा. थाना प्रभारी श्री सिंह की मेहनत रंग लायी और फहीम के अब्बाजान तरन्नुम को अपने घर की जीनत (बहु) बनाने को राजी हो गये. लिखा पढ़ी के साथ तरन्नुम को फहीम के अब्बा अपने घर लिवा लाये और अगले दिन ईद की नमाज के बाद थाना प्रभारी श्री सिंह की उपस्थिति में फहीम और तरन्नुम का निकाह पढ़ा दिया गया. आज तरन्नुम अपने पति फहीम के साथ ससुराल में खुश है.

29 अगस्त 2012 को थाना प्रभारी शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत कार्यालय में बैठे एक आवश्यक फाइल देख रहे थे तभी रोती-कलपती, घबराई एक युवती कार्यालय में दाखिल हुई. युवती ने अपना परिचय देते हुए बताया कि उसका नाम शाहीन है और वह शाहगंज थानाक्षेत्र के सिधाएं गाॅव निवासी शाहबाज खान की बेटी है. शाहीन की अम्मी के इन्तकाल के बाद शाहबाज खान ने दूसरी शादी कर ली. सौतेली मां बेटी शाहीन के साथ कभी अच्छा व्यवहार नहीं किया हमेशा उसे प्रताडि़त करती तथा ठीक से खाना भी नहीं देती. सौतेली मां के अत्याचार से तंग आकर पाॅच माह पूर्व मैं घर छोड़कर भाग निकली, मैं अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेती यदि मुझे मानीखुर्द निवासी सलाउद्दीन का सहारा न मिलता. सलाउद्दीन मुझे बेटी बनाकर अपने घर लाये, मुझे एक नया सहारा और ठिकाना मिल गया, मैं उन्हीं के घर में रहने लगी. सलाउद्दीन का बेटा इरफान उर्फ गोरे हमसे प्यार भरी बातें कर मुझे अपने प्रेमजाल में फांस लिया. मेरे साथ निकाह करने का वादा करके कई बार मुझसे जिस्मानी सम्बन्ध भी बनाये. मेरे पेट में इरफान का बच्चा पलने लगा तो आज सुबह सभी लोग मुझे मारपीट कर घर से बाहर निकाल दिया, मेरे पेट में दो माह का गर्भ है. उन सबों ने धमकी दी है कि यदि मैंने इरफान का नाम लिया तो मुझे जान से मार डालेंगे. मुझे न्याय नहीं मिला तो मैं सचमुच में अपनी जान दे दूॅगी क्योंकि बिन ब्याही मां बनने का कलंक लेकर मैं जी नहीं पाऊंगी, पिता के घर का दरवाजा पहले ही बन्द है.

दिलीप-रीता को आशीर्वाद देते थाना प्रभारी व उनके परिजन
थाना प्रभारी शमशेर बहादुर सिंह ने एक सब इंसपेक्टर को भेजकर सलाउद्दीन और उसके बेटे इरफान उर्फ गोरे को थाने बुला लिया. पूछताछ में इरफान ने कबूल कर लिया कि शाहीन के साथ उसके शारीरिक सम्बन्ध रहे है, इसके बावजूद सलाउद्दीन किसी कीमत पर शाहीन को अपनी बहु बनाने को तैयार नहीं हुए. वह शाहीन को ही चरित्रहीन ठहराकर उससे पीछा छुड़ाना चाहते थे, लेकिन थाना प्रभारी श्री सिंह ने ऊंच-नीच समझाते हुए कहा कि यदि शाहीन को नहीें अपनाया गया तो वह उसकी ओर से एक ऐसा मुकदमा दर्ज कर पिता-पुत्र दोनों पर ऐसी धारा लगाकर जेल भेजेंगे कि जल्द जमानत भी नहीं होगी. इतना ही नही वह शाहीन के गर्भ में पल रहे बच्चे का डी0एन0ए0 टेस्ट भी करायेंगे इसके बाद सच्चाई को नकार नही पाओगे. एफ0आई0आर0 और डी0एन0ए0 जाॅच की बात पर इरफान के पिता सलाउद्दीन शाहीन को अपनाने उसे अपने घर की बहु बनाने को राजी हो गये. लिखापढ़ी के साथ दो दिन बाद थाना प्रभारी श्री सिंह के प्रयास से शाहीन व इरफान का निकाह भी हो गया. अब शाहीन अपने पति इरफान के साथ खुश है.

तीसरा वाकया 07 सितम्बर 2012 का है थाना खेतासराय के ग्राम भदैला निवासी पेशे से अध्यापक नन्दूराम की बेटी वंदना जो बी0ए0 द्धितीय वर्ष की छात्रा है. पढ़ाई के दौरान वंदना का अपने ही कालेज के बी0ए0 तृतीय वर्ष के एक सजातीय छात्र अजीत से प्रेम हो गया और दोनों एक साथ जीवन-जीने का निर्णय भी ले लिया. इधर बेटी के प्रेम-प्रसंग से अनभिज्ञ पिता नन्दूराम ने वंदना की शादी एक दूसरे लड़के के साथ तय कर दी. रिश्तेदार और बिरादरी में भी बात फैल गयी कि वंदना की शादी अमुक दिन अमुक लड़के के साथ होगी. लेकिन वंदना ने इस शादी से इन्कार कर दिया उसने मां-बाप से साफ कह दिया कि वह शादी करेगी तो अजीत से वरना अपनी जान दे देगी. बेटी की जिद पर पिता नन्दूराम वंदना की शादी अजीत से करने को राजी हो गये, लेकिन अजीत के पिता पन्नालाल पहले तो शादी के लिए राजी नहीं हुए पर बहुत समझाने पर तैयार हुए और तीन साल बाद शादी करने की बात कही. मास्टर नन्दूराम को लगा अजीत के पिता समय का बहाना बनाकर टाल-मटोल कर रहे है, उधर अपनी बेटी वंदना का भविष्य देखते हुए वन्दना और अजीत के प्रेम संबंधों का जिक्र करते हुए थानाध्यक्ष खेतासराय को एक प्रार्थना पत्र देकर न्याय की गुहार की.

अगले दिन थाना प्रभारी श्री सिंह अजीत उसके पिता पन्नालाल को थाने बुलवाया और उन्हें जल्द से जल्द शादी करने को कहा. दरअसल वंदना और अजीत का प्रेम पिछले दो सालों से चल रहा था और वे दोनों तन-मन से एक दूसरे के हो चुके थे, उन्हें तो सिर्फ अपने मां-बाप का आशीर्वाद चाहिए था जो नहीं मिल रहा था. थाना प्रभारी श्री सिंह ने दोनों पक्षों को आमने-सामने बैठाकर घंटों समझाया तो अजीत के पिता मान गये, फिर क्या था उसी समय थाना परिसर स्थित दुर्गा मन्दिर में ही वंदना और अजीत की शादी सम्पन्ना करा दी गयी. थाने से ही वंदना अपने पति अजीत के साथ ससुराल के लिए विदा हो गई.

सब इंस्पेक्टर शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत
युनूसपुर मनेछा निवासिनी धनदेई देवी 09 सितम्बर को स्थानीय थाना खेतासराय के प्रभारी श्री सिंह को एक प्रार्थना पत्र दिया. दिये गये प्रार्थना पत्र में धनदेई ने लिखा था कि उनकी बेटी रीता देवी जो बी0ए0 द्वितीय वर्ष की छात्रा है उसे गांव का दिलीप नाम का युवक बहला-फुसलाकर भगा ले गया है. प्रार्थना पत्र पर कार्यवाही करते हुए दिलीप की खोज की गयी तो वह फरार मिला. दिलीप के पिता राजाराम से हुयी पूछताछ में खुलासा हुआ कि दिलीप रीता को मुम्बई भगा ले गया है. दिलीप के पिता पर दबाव बनाया गया तब तीन दिन बाद दिलीप रीता को लेकर जौनपुर वापस आ गया. दिलीप और रीता थानाध्यक्ष श्री सिंह के समक्ष उपस्थित हुए और थाना प्रभारी को बताया कि वे दोनों एक ही कालेज में पढ़ते है और पिछले दो सालों से उन दोनों में प्रेम-सम्बन्ध है तथा शादी करना चाहते है. दिलीप के अनुसार उसके पिता रीता को बहु बनाने को तैयार नहीं थे उनका कहना है यदि मैंने रीता से शादी की तो वह मुझे घर पर नहीं रखेगे और अपनी सम्पत्ति से बेदखल कर देगे. मैं रीता को धोखा नहीं देना चाहता था इसलिए मैं रीता को लेकर 21 अगस्त को घर से भागकर मुम्बई पहुॅच गया. मैंने मुम्बई में एक मन्दिर में रीता से शादी कर ली. दिलीप ने रीता के साथ मन्दिर में हुए शादी से सम्बन्धित कई फोटोग्राफ भी थाना प्रभारी को दिखायें.

फोटो देखने से सब कुछ साफ हो गया था, थाना प्रभारी शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत ने दिलीप के पिता राजाराम को समझा-बुझाकर इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह रीता को बहु के रूप में अपने घर पर रखेंगे. थाना प्रभारी श्री सिंह ने एक बार फिर पण्डित को बुलवाकर थाना परिसर स्थित दुर्गा मन्दिर में दिलीप के पिता राजाराम और रीता की मां धनदेई देवी के अलावा दोनों के परिवारजनों की उपस्थिति में दिलीप और रीता की शादी सम्पन्न कराकर वर-वधू को आशीर्वाद देते हुए थाने से उनकी विदाई कर दी. आज दिलीप अपनी पत्नी रीता के साथ सुख पूर्वक पिता के घर पर रह रहा है.

थाना प्रभारी श्री सिंह को इस बात का बेहद अफसोस है कि उन्हें अपने ही थाना क्षेत्र की बबीता यादव पुत्री शेर बहादुर जो हाईस्कूल की छात्रा थी के प्रेम सम्बन्ध के बारे में समय पर पता नहीं चला अन्यथा वह बबीता के लिए जरूर कुछ करते. दरअसल ग्राम मनेछा शेखूपुर निवासी बबीता गांव के ही इण्टर के एक छात्र सुशील कुमार यादव से प्रेम करने लगी. नाबालिक बबीता और सुशील के प्रेम सम्बन्धों की भनक दोनों के परिवारजनों को भी लग गयी, फिर क्या था दोनों के प्यार पर पहरा बिठा दिया गया, उनकी निगरानी की जाने लगी. परिवारजनों की बंदिश से आजिज आकर 28 अगस्त 2012 को बबीता का प्रेमी सुशील मानी हाल्ट रेलवे के नजदीक ट्रेन से कटकर अपनी जान दे दी. प्रेमी सुशील के आत्महत्या की जानकारी होने पर अगले दिन 29 अगस्त को बबीता यादव भी उसी स्थान पर जहाॅ सुशील ने मौत को गले लगाया था वहीं दून एक्सप्रेस टेªन के आगे बबीता ने भी कूदकर अपनी जान दे दी. दोनों का शव पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया, आज उन्हें भी अफसोस हो रहा है कि यदि अपने बच्चों पर बंदिशे न लगाते और उनकी भावनाओं को समझते हुए प्यार से समझाते तो शायद दोनों को जान देने की नौबत न आती.

थाना प्रभारी शमशेर बहादुर सिंह श्रीनेत के अनुसार टीनेजर्स, कालेजों मे पढ़ने वाले लड़के-लड़कियां आज के टी0वी0 और सिनेमा युग में अपनी लाइफ को ठीक उसी अनुसार ढालने का ख्वाब संजो लेते है जैसा परदे पर देखते है. वह यह  भूल जाते है कि रील लाइफ और रीयल लाइफ में जमीन-आसमान का फर्क होता है मां-बाप को भी ऐसे नाजुक मामलों में समझदारी से काम लेना चाहिए. मां-बाप की जिद के कारण ही अनहोनी की ऐसी घटनायें घटती है. समझदारी के अभाव में आज समाज में आॅनर किलिंग की घटनायें दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है. समाज में रहने वाले लोगांे को सोचना चाहिये कि उनके सामने हमेशा दो विकल्प मौजूद होते है जिससे हमारी न निभे या जो हमारी सोच में फिट न बैठे उससे हम अपने सम्बन्ध तोड़ सकते है, अलग हो सकते है, दूर रह सकते है  लेकिन उन्हंे खास कर बच्चों को उनकी मर्जी का जीवन जीने में बाधक नहीं बनना चाहिए.

बुधवार, 13 मार्च 2013

रक्षक बनना चाह्ता था औरतों के मांस का भक्षक


न्यूयॉर्क पुलिस के एक अफसर को अपनी पत्नी और अन्य महिलाओं की हत्या कर उनका मांस पकाने और फिर उसे खाने की साजिश रचने का दोषी पाया गया है। गिल्बर्तो वैले को अमेरिकी मीडिया में नरभक्षी पुलिस वाले का नाम दिया गया है। पिछले साल वैले की पत्नी से मिली जानकारी के आधार पर एफबीआई ने उन्हें गिरफ्तार किया। अब वो अपनी इस पत्नी से अलग हो गए हैं। 28 वर्षीय वैले को जून में सजा सुनाई जाएगी और
उन्हें उम्रकैद हो सकती है।

वैले के वकील का कहना है कि वो तो इंटरनेट पर कुछ अजीब तरह की वेबसाइटों को देखते समय उनमें दी गई चीजों की सिर्फ नकल कर रहे थे और वो इस मामले में आगे अपील करेंगे। लेकिन अभियोजक हासा वैक्समैन ने मैनहट्टन की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट को बताया कि वैले फंतासी दुनिया को छोड़ कर असलियत की दुनिया में दाखिल हो चुके थे और उन्होंने अपने योजना में शिकार बनाई जाने वाली कुछ महिलाओं से संपर्क भी किया था।

इंटरनेट का सहारा

वैले पर अनुचित तरीके से महिलाओं की निजी जानकारी हासिल करने के लिए कानूनी एजेंसियों के डाटाबेस को इस्तेमाल करने के आरोप भी साबित हुए हैं। अभियोजकों ने बताया कि वैले एक ऐसे इलाके में गए जहां वो न्यू जर्सी के एक व्यक्ति के कहने पर पांच हजार डॉलर की रकम की खातिर एक महिला का अपहरण करने को तैयार हो गए थे। इस व्यक्ति के खिलाफ भी अब मुकदमा चलेगा।

वैले ने इंटरनेट पर ये जानकारी भी तलाश की कि कैसे किसी को बहकाया जा सकता है और कौन सी चीज से व्यक्ति को बेहोश किया जा सकता है। उनके कंप्यूटर में ‘मानव मांस’ जैसे सर्च शब्द मिले हैं। मुकदमे के दौरान वैले की पूर्व पत्नी 27 वर्षीय कैथलीन मैंगन ने भी उनके खिलाफ गवाही दी। उन्होंने बताया कि उन्हें वैले के लैपटॉप पर हजारों ईमले मिले जिनमें उन्होंने अपनी जैसी सोच रखने वाले लोगों को अपनी योजनओं के बारे में बता रखा था।

'वहशी साजिश'

मैंगन ने बताया, 'मेरे पैरों को बांधा जाना था और मेरी कलाइयां और गले को काटा जाना था। वे मुझ में से निकलते हुए खून को देखने की योजना बना रहे थे।' उन्होंने बताया कि ईमेल संदेशों में वैले ने बता रखा था कि कैसे दो और महिलाओं का एक दूसरे के सामने क्लिक करें बलात्कार किया जाएगा ताकि उनमें दहशत को बढ़ाया जा सके, जबकि एक अन्य को जिंदा आग में भूना जाना था।

अदालत में जब वैले की पुलिस की वर्दी में अपनी नवजात बच्ची के साथ तस्वीर दिखाई गई तो वैले और मैंगम की आंखों में आंसू आ गए। 12 मार्च को अदालत में वैले को दोषी करार दिए जाने के बाद सदर्न डिस्ट्रिक्ट ऑफ न्यूयॉर्क की अमेरिकी अटॉर्नी प्रीत भरारा ने कहा, 'आज, ज्यूरी ने आम सहमति से पाया कि गिल्बर्तो वैले ने वाकई महिलाओं का अपहरण करने और उन पर वहशी अपराध करने की योजना बनाई थी और उन्हें उन पर लगे आरोपों में दोषी करार दिया गया है।' लेकिन वैले की वकील जूलिया गैटो ने इस फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा कि ज्यूरी ने अपना सारा ध्यान उनके 'अजीब और विचित्र और साफ तौर पर घिनौने' विचारों पर केंद्रित किया जबकि इस तथ्य पर कोई तवज्जो नहीं दी गई कि उसकी वजह से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ।

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कानूनी रोकथाम के बावजूद

क्या वेश्यायें पेड़ से टपकती है?


वेश्यावृत्ति मानव समाज को वह कोढ़ है जो युगो-युगों से इस समाज के अन्दर ही मौजूद है, शायद इसी कारण से इसे दुनिया का सबसे पुराना ध्ंध कहा जाता है। प्रदेश एवं देश के अनेक हिस्सों में होने वाली वेश्यावृत्ति ;देह व्यापारद्ध को गैर कानूनी घोषित किया गया है, पिफर भी तमाम शहरों और मेट्रोसिटी में वेश्याओं का मुहल्ला ;रेड लाइट एरियाद्ध आबाद है। कोलकाता का सोनागाछी हो या दिल्ली का जीबी रोड या पिफर मुम्बई का कमाठीपुरा, पफाकलैण्ड रोड या मुजफ्ररपुर का चतुर्भुज इलाका, इलाहाबाद का मीरगंज, मेरठ का कबाड़ी बाजार, आगरा का कश्मीरी बाजार, वाराणसी का शिवदासपुर आदि एरिया में वेश्याओं के कई कोठे आबाद है। 

देह व्यापार से जुड़ी औरतांे की संख्या में जिस तेजी से इजापफा हो रहा है उसे देखते हुए तो यही कहना पड़ेगा कि समाजहित में बनाये गये अनेकों अव्यवहारिक कानून की तरह देह व्यापार की रोकथाम के लिए बनाये गये कानून भी बेअसर साबित हो रहा है। तर्क शास्त्राी और वैज्ञानिक सि(ान्तों के अनुसार हम तब तक किसी समस्या का हल या सामाधन नहीं पा सकते जब तक हमें उस समस्या के पैदा होने का मूल कारण न मालूम हो, वेश्यावृत्ति का कारण ढूढ़े तो हमारे सामने एक से एक चैंकाने वाले तथ्य प्रकाश में आयेंगे जिसे देखने से हमारे समाज के आदर्शवादिता सम्बन्ध्ी समस्त सि(ान्त एक मजाक बनते दिखाई देंगे।

पच्चीस साल पहले तक देह ध्न्ध्ें से जुड़ी औरतों के लिए एक ही खास शब्द इस्तेमाल किया जाता था वह था, वेश्या। लेकिन वर्ष 1990 के बाद वेश्या शब्द कापफी व्यापक रूप धरण कर लिया और मूल शब्द तो लुप्त प्रायः हो गया। पिफर तो समाज में एक अलग ही ट्रेड चल गया। वेश्या शब्द एक प्रकार से अछूत और घृणा का शब्द बनकर रह गया, सच कहें तो अब इसे गाली माना जाने लगा। उसके स्थान पर सेक्सवर्कर, कालगर्ल, यौनकर्मी, लाइपफ पार्टनर, रंगीन तितली, रात की रानियां जैसे तमाम आध्ुनिक शब्दों को गढ़ लिया गया। इन शब्दों की अपनी विशेषता और कीमत है। जिसने जिस शब्द के आवरण को ओढ़ा, उसकी कीमत भी उसी अनुसार तय हुआ करती है। मतलब और मकसद दोनों पक्षों का एक ही होता है। अध्कि से अध्कि पैसा कमाना जहाॅ देह प्रस्तुत करने वालियों का उद्देश्य होता है, वहीं देह को भोगने वाले ;जिस्मखोरोंद्ध का उद्देश्य खर्च किये गये पैसे के अनुपात में अध्कि से अध्कि सुख भोगना।

भारत द्वारा वेश्याओं के अन्तराष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबन्ध् लगाने के लिए सख्त कदम उठाने के बावजूद देह व्यापार के लिए औरतों ;मानव तस्करीद्ध के ध्न्ध्ें में कमी नहीं आयी है। नेशनल रिकार्ड ब्यूरों के अनुसार पिछले दिनों 18 वर्ष से कम उम्र लड़कियों की खरीद में तेजी आई है और प्रत्येक वर्ष 6 से 10 हजार नेपाली लड़कियों को चोरी छिपे नेपाल से भारत लाकर वेश्यावृत्ति के पेशे में झोंक दिया गया। अब वर्तमान में इनकी संख्या प्रतिवर्ष 10 हजार पार कर गयी है। सिचएशन रिपोर्ट इण्डिया के मुताबिक भारत में वेश्यावृत्ति में संलग्न नेपाली बालाओं की संख्या 50 प्रतिशत से अध्कि है। वूमेन चाइल्ड एण्ड विभाग के अनुसार भारत में वेश्यावृत्ति के ध्न्ध्ें में लगी कुल औरतों में 30 प्रतिशत की उम्र 18 वर्ष से भी कम है।

राष्ट्रीय महिला आयोग एवं यूनिसेपफ द्वारा 5 वर्ष पूर्व वेश्यावृत्ति पर कराये गये देशव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार यह तथ्य सामने आया है कि अबोध्, कमसिन, नाबालिग बच्चियों को देह के ध्न्ध्ें में झोंकने का इतिहास अपने देश में दो दशक पुराना है। इन 20 सालों में अवयस्क बच्चियों को बड़ी ही तेजी से इस ध्न्ध्ें में उतारा जा रहा है। आयोग ने बाल वेश्यावृत्ति बढ़ने के तमाम कारणों में एक कारण कानून व न्यायपालिका का लचर व कमजोर होना बताया है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आॅकाड़ों से पता चलता है कि भारत दुनिया भर से देह व्यापार का अहम ठिकाना बन रहा है। एक अनुमान के मुताबिक हर वर्ष 20 से 25 हजार नई लड़कियांे को देह व्यापार के ध्न्ध्े में उतार दिया जाता है।

देश में देह व्यापार में संलग्न कुल कितनी महिला, औरतें हैं इसका आंकड़ा ठीक-ठीक तो उपलब्ध् नहीं है पिफर भी लोगों का अनुमान है कि इनकी वर्तमान संख्या लगभग 1 करोड़ है। इस संख्या में ऐसी सभी लड़कियां, औरतंे और पुरूष वेश्या भी शामिल है जो किसी न किसी प्रकार अपने शरीर को माध्यम बनाकर पैसा कमाते हैं। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की माने तो इस ध्न्ध्ें का सालाना कारोबार 2500 करोड़ के ऊपर हैं।

देश के चार महानगरों पर नजर डाले तो मुम्बई और कोलकाता के अलग-अलग महानगर में लगभग डेढ़ लाख वेश्यायें है। दिल्ली एवं चेन्नई शहरों में इनकी संख्या 60 हजार पार कर गयी है। उत्तर प्रदेश के आगरा एवं मेरठ में भी वेश्याओं की अच्छी खासी आबादी मौजूद है। राजस्थान के धैलपुर, अलवर जिला देह व्यापार की बड़ी मण्डी के रूप में बदनाम है। राजधनी जयपुर में 40 हजार के लगभग वेश्यायें है। सवाल उठता है कि जब भारत में देह व्यापार रोकने के लिए कठोर कानून बने है तो पिफर इस ध्न्ध्ें में संलग्न यौन कर्मियों की संख्या तेजी से कैसे बढ़ रही है? क्या वेश्यायें पेड़ से टपकती है?

भारत के संविधन में प्रत्येक नागरिक को समान अध्किार प्राप्त है तथा उनके साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव करने से मना किया गया है। खासकर महिलाओं के विरू( किसी भी प्रकार का भेदभाव न किया जाय इसके लिए संवैधनिक अध्किारों के अलावा समय-समय पर महिलाओं के हित के लिए कई कानून बने है, जैसे- भू्रण हत्या रोकने के लिए पी0सी0पी0एन0डी0टी0 अध्निियम, दहेज निषेध् अध्निियम, जुलाई 1999 में बना डायन प्रथा प्रतिषेध् अध्निियम, बाल विवाह निवारण अध्निियम 1929, के अलवा वेश्यावृत्ति रोकने केे लिए बना अनैतिक देह व्यापार निवारण अध्निियम 1956 के अन्तर्गत ऐसी कई धरायें हैं जिससे इस देह के ध्न्ध्ें पर लगाम लगाई जा सकती है।

भारतीय दण्ड विधन की कई धरायें ऐसी है जो महिलाओं के लिए खास है। जिसमें धरा 498;औरतों को प्रताडि़त करने पर सजा दिलानेद्ध, धरा 125 ;महिला को भरण-पोषण दिलानेद्ध, धरा 375 ;बलात्कार के लिए सजाद्ध और वर्ष 2005 में बना घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अध्निियम, राष्ट्रीय विध्ेयक सेवा प्राध्किार अध्निियम ;महिलाओं को मुफ्रत कानूनी सहायता प्रदान करनाद्ध प्रमुख है।

इतने सारे कानूनी और संवैधनिक अध्किार प्राप्त होने के बावजूद आज समाज में औरतों की स्थिति क्या है यह किसी से छिपा नहीं है। सभी को पता है इन कानूनांे का कितनी कड़ाई के साथ पालन होता है। यही कारण है कि औरतों से जुड़ा प्रत्येक मामला चाहे वह भ्रूण हत्या का हो, दहेज हत्या हो, बलात्कार या पिफर यौन शोषण का मामला हो, उत्पीड़न हो या पिफर औरतों के खरीद पफरोख्त का मामला, सभी का ग्रापफ बड़ी तेजी से बढ़े है। केवल कानून बना देने मात्रा से ही समाधन होने वाला नही हैं। हमें अपनी सोच और काम करने के तरीकों में बदलाव लाना होगा। खासतौर से तेजी से बढ़ रहे देह व्यापार को लेकर. इस दिशा में औरतों विशेष रूप से टीनेजर्स और कालेज गर्ल जो आध्ुनिक ग्लैमर युक्त पफैशन की चकाचैंध् में पफंसकर अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए शार्टकट रास्ता अपनाती है और अपनी देह द्वारा कमाई करने लगती है।

हाल के कुछ वर्षो में बड़ी संख्या में मध्यम और सम्भ्रान्त घरों की महत्वाकांक्षी जवान लड़कियां कालगर्ल का पेशा अपनाकर अपने मंहगे और आलिशान शौक को पूरा कर रही है। इन्हें कोई जोर जबर्दस्ती से इस पेशे में नहीं लाता, ये स्वयं बेहतर जीवन जीने के लिए खुद ही इस ध्न्ध्े में आ जाती है। कहीं भी 4-5 हजार की नौकरी करने से इनके शौक पूरे नही हो सकते। लेकिन इस रास्ते से वह अपने पूरे शौक बड़ी आसानी से पूरी कर लेती है। देह ध्न्ध्े से जुड़ी मीरजापुर की एक इंग्लिश आनर्स छात्रा का तो यहाॅ तक कहना है कि कुछ लोग पैसा कमाने के लिए जहाॅ अपनी बु(ि का इस्तेमाल करते है, मैं अपनी देह का इस्तेमाल करती हूॅ तो इसमें गलत क्या है? जीवन में मौज मस्ती और शार्टकट से अध्कि पैसा कमाने की चाहत इसी ध्न्ध्े से पूरी की जा सकती है। इसलिए जरूरत है ऐसी सोच को बदलने की, साथ ही पैसा कमाने के लिए नैतिकता, मानवता और चरित्रा को दरकिनार करने की मानसिकता को त्यागना होगा, तभी निरन्तर पफैल रहा देह का यह ध्न्ध सही मायने में रोका जा सकता है।
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