किसानों के दूध की बिक्री में वृद्धि और विपणन रणनीति में सुधार के द्वारा चिरस्थायी विकास को बढ़ावा
नई दिल्ली : जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआइसीए) ने भारत सरकार के साथ आज एक अनुबंध किया है जिसके तहत वह ‘प्रोजेक्ट फॉर डेरी डेवलपमेंट’ के लिए 14,978 मिलियन जापानी येन (भारतीय मुद्रा में लगभग 920 करोड़ रुपये) का आधिकारिक विकास सहायता लोन (ओडीए) प्रदान करेगा।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य दूध और दुग्ध उत्पादों की बिक्री बढ़ाना है । इस दिशा में संगठित बाज़ार तक किसानों की आसान पहुँच, डेरी प्रोसेसिंग सयंत्रों और विपणन संबंधी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाना, और उत्पादक-स्वामित्व वाले संस्थानों में सुधार किया जाएगा ताकि प्रोजेक्ट एरिया में दुग्ध उत्पादकों को ज्यादा रिटर्न मिल सके।
इस ओडीए लोन अनुबंध पर भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामला विभाग के अतिरिक्त सचिव डॉ. सी.एस.मोहापात्रा और जेआइसीए इंडिया ऑफिस के मुख्य प्रतिनिधि कात्सुओ मात्सुमोतो ने हस्ताक्षर किये।
इस अवसर पर जेआइसीए इंडिया के मुख्य प्रतिनिधि, श्री कात्सुओ मात्सुुमोतो ने कहा कि, “जेआइसीए भारत में किसी डेरी प्रोजेक्ट को पहली बार सहायता दे रहा है. हम उपभोक्ताओं को उत्तम और स्वास्थ्यकर प्रसंस्कृत दूध उपलब्ध कराने के लिए डेरी सयंत्रों के उन्नयन और आत्म-निर्भर मॉडल की आवश्यकता को समझते है । यह प्रोजेक्ट ‘विज़न-2022 नेशनल ऐक्शन प्लान ऑन डेरी डेवलपमेंट’ के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य डेरी सहकारी संगठनों की क्षमता बढ़ाना और आधुनिकीकृत बाज़ारों की बेहतर सुलभता और कोल्ड चेन्स के उन्नयन के द्वारा दूध की बिक्री बढ़ाकर किसानों की आय दोगुनी करना है । हमारा उद्देश्य एक ऐसा आत्म-निर्भर मॉडल स्थापित करना है जिससे दूध की बर्बादी रोकी जा सके और किसानों का प्रतिलाभ बढ़ सके । इस दिशा में विशेषकर लघु एवं सीमान्त दुग्ध उत्पादकों के लिए रोजगार सृजन और महिला सशक्तीकरण पर फोकस किया जाएगा । ”
नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) इस प्रोजेक्ट की कार्यान्वयन एजेंसी है
सहभागिता की इच्छा और वास्तविक वित्तीय मांग के आधार पर प्रोजेक्ट में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड और पंजाब राज्यों को शामिल किया गया है. यह प्रोजेक्ट एक अद्वितीय दो-चरणीय (टू-स्टेप) लोन मॉडल पर बनी है जिसमे नेशनल डेरी डेवलपमेंट बोर्ड को फण्ड मुहैया किया जाएगा । फण्ड का भुगतान मिल्क यूनियनों और उत्पादन कंपनियों की वित्तीय मांग एवं ज़रुरत के आधार पर होगा. प्रोजेक्ट द्वारा न केवल वित्तीय सहायता दी जायेगी, बल्कि सहभागी संस्थानों को रणनीतिक प्रबंधन, व्यवसाय नियोजन और विपणन रणनीति पर कार्यशालाओं और प्रशिक्षणों के माध्यम से उनका क्षमता निर्माण भी किया जाएगा।
भारत में दुग्ध उत्पादन और प्रसंस्करण एक महत्वपूर्ण उद्योग है, और भारतीय अर्थव्यवस्था एवं शहरीकरण के अपेक्षित विस्तार को देखते हुए दुग्ध उत्पादों की मांग भी बढ़ने का अनुमान है। किन्तु, ताज़ा दूध जल्दी खराब हो जाता है. इसे बैक्टीरिया के फैलने से बचाने के लिए दूध दूहने के बाद जीवाणुरहित और असंक्रमित करने और उसके तुरंत बाद प्रशीतन करना ज़रूरी होता है । इसलिए, दूर-दराज इलाकों के किसानों को, जिनके पास प्रशीतन सुविधा उपलब्ध नहीं है, भारी मांग वाले शहरी इलाकों में अपना दूध बेचने में कठिनाई होती है। फिलहाल आधुनिक बाज़ारों में, या तथाकथित संगठित क्षेत्र में बेचे जाने वाले दूध की मात्रा भारत में कुल दुग्ध उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत है । दुग्ध उत्पादक उन किसानों के लिए, जो सहकारी समितियों और निजी डेरी कंपनियों के साथ व्यापार नहीं करते हैं, औपचारिक बाज़ार की सुलभता एक बड़ा मुद्दा है।
इस प्रोजेक्ट द्वारा कोल्ड चेन्स और प्रोसेसिंग जैसे उपकरणों को उन्नत करने और विपणन तकनीकों की क्षमता बढ़ाने में सहायता की जायेग । इससे दूर-दराज के किसानों से दूध जमा करने वाले सहभागी संस्थानों को दुग्ध के कारोबार से ज्यादा आमदनी प्राप्त करने में मदद मिलेगी. आधुनिकीकृत बाज़ार तक लघु किसानों की पहुँच बढ़ने से बेचे जाने वाले दूध की मात्रा और इस तरह किसानों की आमदनी बढ़ेगी ।
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