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सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

अंधविश्वास का मकड़जाल


भूत भगाने के लिए अस्पताल में ही पूजा
इक्सवीं सदी के भारत में आज जहां देशवासी दिन-प्रतिदिन नए आयाम छू रहे है, वहीं झारखण्ड राज्य आज भी अंधविश्वास के गहरे मकड़जाल से नहीं निकल पा रहा है। राज्य गठित हुए लगभग आठ साल बीत गए हैं, लेकिन आज भी झारखण्ड का आदिवासी वर्ग हो या बुद्धजीवी वर्ग, जान सांसत में फंसी देख यह लोग हर जतन कर डालते हैं, फिर चाहे जगह अस्पताल ही क्यों न हो।

वैसे भी अंधविश्वास में जकड़े इस प्रदेश के आदिवासियों को इलाज से अध्कि झाड़-फूंक पर भरोसा होता है। इसका जीता-जागता उदाहरण 17 नवम्बर को जमशेदपुर के मसहूर हास्पिटल एमजीएम के इमरजेन्सी वार्ड के बेड नम्बर 8 पर देखने को मिला।

बेड नम्बर 8 पर भर्ती हरि मूल रूप से धलभूमगढ़ के नरसिंहगढ़ गांव का निवासी है। पेशे से ट्रक चालक हरि की शादी जमशेदपुर के एमजीएम थाना क्षेत्र के बड़ाबांकी गांव के निवासी बुधों सिंह की बेटी से लगभग दो वर्ष पहले हुई थी। उसका एक बच्चा भी है।

स समय जमशेदपुर में मलेरिया काबू से बाहर है। इसी मलेरिया के चपेट में हरि भी आ गया। इलाज में देर होने के कारण हरि की हालत बिगड़ती चली गयी। दामाद की बिगड़ती हालत देखकर बुधों सिंह ने उसे एमजीएम अस्पताल भर्ती करा दिया। फिलहाल हरि बेहोश था और उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई थी। उसके साले मोटो सिंह र ससुर बुधों सिंह ही उसकी देखभाल कर रहे है। डाक्टर की कोई दवा कारगर नहीं हो पा रही थी।
दामाद की हालत सुधरता न देखकर बुधों सिंह को लगने लगा कि हो न हो हरि पर किसी भूत-प्रेत का साया तो नहीं पड़ गया है? आखिरकार कुछ सोच विचार के बाद उसने तंत्र-मंत्र का सहारा लेने का मन बनाकर अस्पताल में ही बड़ाबांकी से ओझा-गुनी को बुला लिया। ओझा ने अस्पताल में ही हरि पर से भूत भगाना शुरू कर दिया, जिसे देखने वालों की भीड़ जुट गई।

ओझा ने पहले कुछ सामानों की मदद से हरि के बेड के नीचे फर्श पर कुछ आकृति बनाई और उसमें अनाज के दाने भर दिए फिर उसने झोले से एक मुर्गा निकाला और उसे उन दानों को चुंगने का आदेश दिया। हालांकि सहमे मुर्गे ने कुछ नहीं खाया। फिर ओझा ने पूजा-पाठ के कई उपक्रम किए और अंत में सारे सामान समेटकर वहां बनाई आकृति मिटाकर चलता बना। जाते-जाते ओझा ने बुधों सिंह को बताया कि हरि पर भूत का जो साया था उसे उसने उतार दिया है।

अब हरि का भूत भागा या नहीं फिलहाल इस बारे में बुधों सिंह ही जाने पर अस्पताल प्रबंधन की ओर से भी इस पर कोई ऐतराज नहीं जताया गया था।

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